ठेड़ा मेडा,कुबड़ा सा,
टूटा फूटा बिखरा सा,
गलत खानों में भरा हुआ वो कमरा,
जिनमे कभी यादें रहा करती थीं...
कोनो की गन्दगी,कहानी कहती थी
गिरी चाय,माँ की मठरी की भोर,पुराने अख़बार
गंदे कपडे तितर बितर पड़े,सब,कुछ बोलते थे
हाँ,यहाँ कभी थोड़े पागल से,मसखरे,कुछ दोस्त रहा करते थे
टूटा फूटा बिखरा सा,
गलत खानों में भरा हुआ वो कमरा,
जिनमे कभी यादें रहा करती थीं...
कोनो की गन्दगी,कहानी कहती थी
गिरी चाय,माँ की मठरी की भोर,पुराने अख़बार
गंदे कपडे तितर बितर पड़े,सब,कुछ बोलते थे
हाँ,यहाँ कभी थोड़े पागल से,मसखरे,कुछ दोस्त रहा करते थे
Simply tooo good :)
ReplyDeleteAnyways I have always liked hindi poems more(probably coz I dont understand the depth of English ones :P)
:) I feel I can always express myself better in Hindi mittal saab...after all hamari basha hai :)
ReplyDeleteHappy Independence day!