Tuesday, April 23, 2013

हंस लें आज

शायद सवालों के दायरे में जवाब कहीं खो से गए 
खामोश सन्नाटों में , हंसी के फुहारे सो से गए 

बड़ी दिवाली के इंतज़ार में , रोशन ख़ुशी के मौके फिसलते रहे
चलो आज बेवजह हंस लें, कल शायद बरसात की बूंदों में आसूं छिपाने पड़ें 

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