घने अँधेरे में , चिल्लाते हुए वो बल्ब
भूके बच्चों से, जिनकी थाली में खाना नहीं परोसा माँ ने,
तिलमिलाते, भाग जाने की धमकी देते हुए से,
पर वहीं थक हार के सोते हुए पाए जाते .
अँधेरे की पत्थर सी रोटी को कहाँ भिगा पाएंगे यह रोशनी के आसूं
मुई अँधेरे की थाली तोह बस बाद रही है लगातार ,
कल गली का एक और बल्ब फ्यूज मिला है,
चोट के निशान गहरे हैं , की साफ़ दीखता है, अँधेरा आर पार हुआ है।
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