साफ़ सुथेरे से, बेरंगे से आसूं , कैसे काले हो जाते हैं,
आखों से निकलते हुए,काजल में लिपट कर गलों से लकीर में ,ढुलक जाते हैं
कैसे धुआं मुहं से निकल कर खो जाता है,
छल्ले तितर बितर हो के,नाराज़ होकर भाग पडतें है
हाँ, वह सिगेररेट जलते जलते भूल जाती है,
गिर पड़ती है राख बनकर,हाथ पर,जगा देती है
यादें करती हैं ऐसा,बदतमीज़ सी,छोडती नहीं हैं
आ जाती हैं न वापस,रंग बदल कर,मौका देख कर....
आखों से निकलते हुए,काजल में लिपट कर गलों से लकीर में ,ढुलक जाते हैं
कैसे धुआं मुहं से निकल कर खो जाता है,
छल्ले तितर बितर हो के,नाराज़ होकर भाग पडतें है
हाँ, वह सिगेररेट जलते जलते भूल जाती है,
गिर पड़ती है राख बनकर,हाथ पर,जगा देती है
यादें करती हैं ऐसा,बदतमीज़ सी,छोडती नहीं हैं
आ जाती हैं न वापस,रंग बदल कर,मौका देख कर....
Wah, Wah, Wah !
ReplyDeleteGud imagination about “Ansu”
And very true about “Yaadein”,
It’s very soothing.