Sunday, February 26, 2012

छोटी बड़ी बूँदें

छोटी सी आखों में इतनी बड़ी बूंदे समाई हुई
निकल आती हैं , चाहे झिल्लिओं से दरवाज़ा बंद हो या खुला
सोते या जागते,हँसते या उदासी में,निकल आती हैं...
उन छोटी से आखों से वो बड़ी,से बूंदे...

निकल के भागती हैं,इतर बितर,खुद होटों से सट कर मुस्कुराते हुए...
गालों को लाल, शर्मसार करते हुए,पर खुद बैखौफ,निडर,गिरते पड़ते...
आसूं ही तो हैं,बहने दो,खारी बूँदें ही तो हैं,गिरने दो,टपकने दो,छोड़ दो...
पकड़ो मत,फसाओं  मत,जाने दो यार...छोटी सी आखों से रिहा कर दो...

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