नींद , साथ आती है बिस्तर तक
आखों को चूम कर, छुप जाती है
चौखट के सुदूर , अपनी माशूका के पास
खेलती , उस अल्हड सी , महकती रात के साथ
आज फिर,मुई नींद, रंग रैलियां मना रही होगी
अलग अलग रंगों की के नकाब में मुझसे चुप
गुलाबी होते अंधेरों के साथ , नैन मटका करती
बेशर्मी और बेहद सलीकों की चादर के पीछे, मुस्कुराती
उस घोर , गहरे कालेपन की शर्ट के बटन तोड़ती
सारे रंगों को मानो पी जाती,
और में प्यासा , खुद को जकड़ा ,उसकी कसक में
मुआ , सच्चे आशिक सा , बिस्तर पर किसी और को आने नहीं देता
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