Tuesday, January 7, 2020

समझ

इस झूठ के दलदल में , सब पर कीचड़ है
दाएं या बाएं , या सबके दरमयान , बीच में आप
कमल के गले में उंगलिआं हैं , या हाथ के चंगुल में फ़ूल
मुझे ऐसे लग रहा,की हम पब्लिक है ब्लडी फूल

सत्ता के गलियारे में जिनको भेजा था ,
और जिसको कहा था,तुम विपक्षी हो,
दोनों ही हमारे तो थे,हमारी ऊँगली की स्याही
फिर क्यों हमारी ऊँगली आज मरोड़ दी गयी?

सच कहीं तो है,पर कहाँ?
सड़कों पर,या टीवी पर,
कॉलेज में,या ट्विटर पर
अंग्रेजी में,या हिंदी में?

सच के चेहरे पर तो तेज़ाब है , शर्मसार वो खुद
कभी बेरोज़गार के पास,या फ़िल्मी बाबू के माइक पर ?
छात्रों के मुखोटों  में ,या पुलिस की लाठिओं में ?
जला हुआ,पहचान से परे , ठिठुर रहा , फुटपाथ पर

मैं भी ढून्ढ रहा हूँ, पर गूगल भी बताता नहीं
जो बता रहे हैं, उनका समझ आता नही
चलो आज फिर कोशिश करता हूँ,
वरना समझ नहीं आता , की टीका ऊँगली पर लगाऊं ,या माथे पर 

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