Friday, April 5, 2019

Raste

चट्टानें बड़ी बड़ी तो क्या
रस्ते कठिन कठिन तो क्या
हम तो वो धारा जज़्बों की
बहती चलती रुकती ना

हर उम्मीद से ऊपर
हर एक मुश्किल से आगे
रस्ते रस्ते पर हाथ बटांते
नीवं रखते उस मंज़िल का

कुछ भी इंकलाबी कभी आसान था क्या?
चलने लायक रास्ता कभी समतल ,सामान था क्या?
नहीं,तभी तो दीवाने चलते हैं
उस कठिन रस्ते पर उभरते हैं

डामर और पत्थर पर ताज से चलते 
नव युग के निर्माण का भार दिल में भरके
चल पड़े हैं उस ओर , चट्टानों को लाँघ के
खुली आखों से सपने को साकार करते हुए ,हम Rivigo हैं