चट्टानें बड़ी बड़ी तो क्या
रस्ते कठिन कठिन तो क्या
हम तो वो धारा जज़्बों की
बहती चलती रुकती ना
हर उम्मीद से ऊपर
हर एक मुश्किल से आगे
रस्ते रस्ते पर हाथ बटांते
नीवं रखते उस मंज़िल का
कुछ भी इंकलाबी कभी आसान था क्या?
चलने लायक रास्ता कभी समतल ,सामान था क्या?
नहीं,तभी तो दीवाने चलते हैं
उस कठिन रस्ते पर उभरते हैं
डामर और पत्थर पर ताज से चलते
नव युग के निर्माण का भार दिल में भरके
चल पड़े हैं उस ओर , चट्टानों को लाँघ के
खुली आखों से सपने को साकार करते हुए ,हम Rivigo हैं
रस्ते कठिन कठिन तो क्या
हम तो वो धारा जज़्बों की
बहती चलती रुकती ना
हर उम्मीद से ऊपर
हर एक मुश्किल से आगे
रस्ते रस्ते पर हाथ बटांते
नीवं रखते उस मंज़िल का
कुछ भी इंकलाबी कभी आसान था क्या?
चलने लायक रास्ता कभी समतल ,सामान था क्या?
नहीं,तभी तो दीवाने चलते हैं
उस कठिन रस्ते पर उभरते हैं
डामर और पत्थर पर ताज से चलते
नव युग के निर्माण का भार दिल में भरके
चल पड़े हैं उस ओर , चट्टानों को लाँघ के
खुली आखों से सपने को साकार करते हुए ,हम Rivigo हैं