Sunday, February 14, 2016

Kisse

किस्से कश के किस्से जाम के,
किस्से कुछ नाम,कुछ गुमनाम से

किस्से जिन पर रोये थे कल, आज शाम मुस्कुरान के
पीछे देखा तो लगा, किस्से नहीं वह दोस्त थे

साथ चल रहे थे,सँभालते हुए हमें,बिना किसी मंज़िल के,बिना किसी मक़ाम के 

Somwar

सोमवार को भीड़ भड्डाके वाली जगह ढूंढ़ता मैं ,
जहाँ शोर ही इतना हो की अंदर की दबी आवाज़ बेज़ुबान हो जाये

रविवार को दूर भाग रहा हूँ कल से, आज की रात को कस कर पकड़ के बैठा हूँ
कस के बैठा हूँ , इस रात की चमकती हुई रोशनियों के दरमियान

की बस आज रात यहीं रह जाये और कल सवेरा न हो