Friday, April 27, 2012

Sapne...kaise se..

टूटे फूटे बिखरे से
लथ पथ कीचड़ गंदे से
हो जाते सपने कैसे से,
कुबड़े,भद्दे धब्बे से.....

रोते चिल्लाते बिलखते से
गुस्सा होकर बैठे से
बठखा भरते , बौखलाए कैसे से
दीन दुनिया को जीभ दिखाते,चिड़ते बच्चे से....

बेईमान,कुटिल पर सच्चे से,
पागल,संत,उग्रवादी,बहके से
ज़िन्दगी को गेंद समझ कर,लात मारते
सपने ही तो हैं,मज़बूद बुलबुले से,कच्चे से,पक्के से.....